लेखनी कहानी -11-Dec-2022
रचना - कविता
लेखक - विजय पोखरणा 'यस'
🎈शीर्षक + बचपन🎈
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क्या खूब मजे थे जब बच्चे थे।
ना खाने की भूख लगती थी,
ना पानी की प्यास लगती थी।
ना पढ़ाई की चिंता थी।
ना सब्जी लाने की मजबूरी थी।
नहीं किसी का डर था।
ऑफिस के काम की तो लेस मात्र चिंता न थी,
बॉस का तो सपने में भी डरन ना था।
टारगेट का नाम तो सुना ही नहीं था।
हम अपने जीवन के राजा थे।
कक्षा से गायब होकर दोस्तों के साथ भागना,
एक अनूठी जिंदगी की शान थी।
कक्षा में कॉपी की हवाई जहाज उड़ाना एक अनूठा आनंद देता था।
होमवर्क हेतु चॉकलेट खाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार था।
काश आज फिर बच्चे बन जाते,
अब जिंदगी का वह अद्भुत संसार पु:न जीवंत हो जाता।
बचपन का वह स्वर्णिम युग पु:न आता।
हम संसार के सबसे सुखी प्राणी होते।
आज गाड़ी बंगला सर्व सुविधा होते हुए भी,
उस बचपन के अद्भुत संसार से वंचित हैं,
हे प्रभु मेरा बचपन मुझे पुन: लौटा दे।
विजय पोखरना 'यस'
11.12.2022
Gunjan Kamal
10-Jan-2023 08:23 PM
बेहतरीन
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Mahendra Bhatt
12-Dec-2022 09:53 AM
शानदार
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Rajeev kumar jha
12-Dec-2022 03:50 AM
बहुत ही सुन्दर
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